प्रद्योत ने त्रिपुरा पैलेस में सार्वजनिक शौचालय का निर्माण रोकने की मांग की
प्रद्योत ने त्रिपुरा पैलेस में सार्वजनिक शौचालय का निर्माण रोकने की मांग की

अगरतला, त्रिपुरा के अगरतला में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत यहाँ के ऐतिहासिक उज्जयंत महल में एक शौचालय ब्लॉक के निर्माण ने विवाद पैदा कर दिया है और इस कदम से नाखुश त्रिपुरा शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने पश्चिम त्रिपुरा के जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखकर उनसे तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।
महल का एक हिस्सा अभी भी शाही परिवार के निवास के रूप में उनके अधीन है और शेष हिस्सा त्रिपुरा सरकार के नियंत्रण में है, जिसमें 2011 तक विधानसभा थी और अब राज्य संग्रहालय बन गया है।
हाल ही में त्रिपुरा पर्यटन विकास निगम ने महल के सामने के लॉन पर एक लाइट एंड साउंड शो शुरू किया, जिसके लिए शहर प्रशासन ने अंदर एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शुरू किया। निर्माण से क्रोधित प्रद्योत ने डीएम से उज्जयंता पैलेस परिसर के भीतर पवित्र स्थान पर जहां वे केर और खारची जैसे स्वदेशी अनुष्ठान और पारंपरिक पूजा करते हैं, वहां पर सार्वजनिक शौचालय, सेप्टिक टैंक और पानी की टंकी के चल रहे निर्माण को रोकने का अनुरोध किया।
प्रद्योत ने कहा, “मैं प्रशासन की इस घोर लापरवाही से बहुत आहत और व्यथित हूं। यह कार्रवाई न केवल पवित्र स्थल की पवित्रता को कमजोर करती है बल्कि पीढ़ियों से संरक्षित सांस्कृतिक विरासत का भी अनादर करती है। इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि विलय समझौते के अनुसार, महल परिसर में सभी पारंपरिक पूजाओं को सुविधाजनक बनाने और व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी डीएम पर आती है।''
पत्र में कहा गया है कि ऐसे पवित्र स्थल पर सार्वजनिक शौचालय/सेप्टिक टैंक/पानी की टंकी का निर्माण न केवल इन अनुष्ठानों की पवित्रता को बाधित करता है, बल्कि शाही परिवार द्वारा संरक्षित सांस्कृतिक विरासत की संवेदनशीलता और समझ की कमी को भी दर्शाता है। कई व्यक्तियों द्वारा निर्माण कार्य रोकने की मांग के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
उन्होंने कहा, ''25 दिसंबर (क्रिसमस) को प्रशासन द्वारा इस तरह की हरकतें समझ से परे हैं और प्रशासन की मंशा पर सवाल उठाती हैं।''
पत्र में उन्होंने कहा, “मैं आपसे में आग्रह करता हूं कि आप तुरंत हस्तक्षेप करें और बिना किसी देरी के इस क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों को बंद करना सुनिश्चित करें, हमारे आदिवासी रीति-रिवाजों, परंपराओं और पवित्र स्थलों को संरक्षित करना सर्वोपरि है और इन सांस्कृतिक विरासतों की रक्षा और सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।''
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